भारत में यहां आज भी होता है मुजरा

भारत में मुजरे का अपना एक इतिहास रहा है, मुगल काल से चली आ रही ये प्रथा आज भी जीवित है.

कोठे, मुजरे और तवायफ के अतीत की गलियां मुगल सल्तनत से भी जुड़ी हुई हैं.

1616 में जहांगीर ने इन मुजरे करने वालियों को बुरहानपुर के बोरवाड़ी क्षेत्र में बसाया था.

इस दौरान मोती कुंवर, बेगम गुलारा जैसी तवायफों पर जहांगीर का दिल आ गया था.

जहांगीर ने मोती कुंवर के लिए असीरगढ़ के पास एक महल बनवाया था, जिसे मोती महल कहा जाता है.

इसी प्रकार उसने गुलारा बेगम के लिए भी उतावली नदी के किनारे गुलारा महल बनवाया था.

कट्टर बादशाह औरंगजेब भी बुरहानपुर की एक हिन्दू तवायफ हीराबाई से प्रेम करने लगा था.

मुगल काल के दौरान मुजरा कलाकारों को सुसंस्कृत और उच्च तहजीब का माना जाता था.

मुजरे की परम्परा मुंबई के बाचूबाईवाड़ी क्षेत्र में आज भी चली आ रही है.

मुजरे की परम्परा मुंबई के बाचूबाईवाड़ी क्षेत्र में आज भी चली आ रही है.